शब्दों का व्यापारी हूँ, मुनाफ़े के लिए ज़मीर नहीं बेचता. विजय सुथार

0 minutes, 2 seconds Read

लूणिंया,फिल्म उद्योग में आज 100 करोड़ या 200 करोड़ की होड़ में निर्माता  निर्देशक दर्शकों को फूहड़ता परोसने में लगे हुए हैं और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी भूलते जा रहे हैं , यह कहना हैं बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना चुके श्रीगंगानगर जिले के लूणिंया के नजदीक गोमावाली निवासी लेखक – निर्देशक विजय सुथार का.     कई फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का लेखन निर्देशन कर मुंबई को ही अपनी कर्म भूमि बना चुके विजय अपनी आने वाली फिल्म ‘प्लॉट नंबर 302’ के प्रदर्शन के सिलसिले में रामसिंहपुर आए तो आजकल के फिल्म बाजार पर खुल कर चर्चा हुई, उन्होंने कहा कि फिल्में समाज का आईना होती है ये कह कर पल्ला झाड़ लेना आसान है लेकिन असल बात यह है कि फिल्मों से आज का युवा बहुत ज्यादा प्रेरित होता है और एक फिल्मकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसे युवाओं को क्या प्रेरणा देनी है, मिर्जापुर जैसी सीरीज के बाद देश का युवा बदतमीज हुआ है वो अपने पिता के सामने भी गाली गलौच करने में संकोच नहीं करता, फैमिली मैन सीरीज में व्यक्ति के कई टुकड़े कर के फेंक देने वाले सीन से प्रेरित होकर ही दिल्ली में आफताब नामक युवक ने लड़की को 35 टुकड़ों में काटकर फेंकने की घटना को अंजाम दिया और ये बात उसने स्वीकार भी की, विजय सुथार ने बताया कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के बाद अब वो राजस्थानी सिनेमा को फिर से पहचान दिलाने के मिशन में लग चुके हैं और क्षेत्र की प्रतिभाओं को भी अपनी फिल्मों में मौका दे रहे हैं, अपनी फिल्म “तावड़ो द सनलाइट” में जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई थी तो “द पुष्कर लॉज” में भी ड्रग्स के खिलाफ आवाज उठाई, “चौधरी साब री चतुर फैमिली” में उन्होंने संयुक्त परिवार पर संदेश दिया तो “कर्ज़ रो घूंघट” में आज के युवा का कर्ज में डूबने का कारण बताया, “प्लॉट नंबर 302” के बारे में उन्होंने बताया कि आज के दौर में भी ग्रामीण इलाकों में अगर कोई एच आई वी पॉजिटिव हो जाए तो उसे बदचलन ही समझा जाता है, उन्हें लगता है कि केवल असुरक्षित यौन संबंधित ही एचआईवी का कारण होता है, जबकि उसके और भी कारण हो सकते हैं, ऐसी ही एक एचआईवी पॉजिटिव लड़की के संघर्ष को फिल्म में दिखाया गया है, यह फिल्म साल 2025 के शुरुआत में सिनेमाघरों में पहुंचेगी ।

Similar Posts